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गति / पुरुषोत्तम अग्रवाल

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यहाँ कोई गति नहीं पा सकता
बिना शुल्क दिए
चाहे वह रोहित ही क्यों न हो
देना ही होगा
शुल्क तुम्हें
शैव्या !
चाहे वह फटा वस्त्र ही क्यों न हो
यही आदेश है
इसी का पालन कर्तव्य है ।

किसे मिलती है गति
बिना शुल्क दिए
कहाँ जलता है शव
कहाँ करता है जीव
अंतरिक्ष गमन
बिना शुल्क दिए ।

चुकाना ही होगा कर
जो निर्धारित है
मुझसे विवाद अकारथ है
विवाद से नहीं चलतीं व्यवस्थाएँ
वे अनुगमन से ही जीवित हैं
विवाद से मनुष्य जीता है
लेकिन गति नहीं पाता ।

कोई नहीं पाता गति
बिना शुल्क दिए
वह तुम्हें चुकाना ही होगा ।