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गदोरी पर रची मेंहदी की लाली याद आती है/ वशिष्ठ अनूप

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गदोरी पर रची मेंहदी की लाली याद आती है,
मुझे अक्सर वो लड़की भोली-भाली याद आती है।

किसी कुन्दन-जड़ी गुड़िया को जब भी देखता हूँ मैं,
किसी के कान की पीतल की बाली याद आती है।

तुम्हारी बोलती ख़ामोशियाँ महसूस करता हूँ,
वो फूलों से भरी ख़ुशरंग डाली याद आती है।

बहुत-सी बिजलियों की झालरें आँखों में जब चुभतीं,
वो मिट्टी के दियों वाली दिवाली याद आती है।

नई तहज़ीब जब निर्वस्त्र होती जा रही दिन-दिन,
सलीकेदार औरत गाँव वाली याद आती है।

शहर के होटलों में रोटियों के दाम जब पढ़ता,
मुझे ममता-भरी वो घर की थाली याद आती है।