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गधा पँजीरी खा गया, फिर भी रहे विनीत / रंजना वर्मा

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गधा पँजीरी खा गया, फिर भी रहे विनीत।
पतिव्रता जिस को कहें, करे गैर से प्रीत॥

वही लाभ सब कुछ लगे, जो पायें तत्काल
पड़ी कुल्हाड़ी पाँव पर, किन्तु नहीं भयभीत॥

मूँद नयन सुनते रहें, नित्य नयी अफ़वाह
मीठी मीठी जो कहे, वही लगे अब मीत॥

अपने ही हाथों दिया, आज भविष्य उजाड़
बैठे गीध मशान पर, छेड़ रहे संगीत॥

धूर्त शकुनि के हाथ में, राजनीति की डोर
स्वार्थ सिद्धि हित पालता, है विरोध की रीत॥

थोथे वादों से कभी, बनता नहीं भविष्य
मिट जायेगी कामना, ज्यों बालू की भीत॥

दुनियाँ में मिलता नहीं, माँगे से अधिकार
ताकत से होते सदा, कर्म नीति विपरीत॥