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गधे का सर / रमणिका गुप्ता

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हाथों का हाथी हूँ
पाँव का घोड़ा
सर पर धर दिया है तुमने
घोड़े जैसा
सब्र के गधे का सर
कोल्हू के बैल की तरह
आँखों पर बाँध दिया तूने चमड़े का चमौटा
ठोक दी है सोच पे सहनशील नाल

इसीलिए
तुम सबके यहाँ गदहे-सा खटता हूँ
बैल-सा जुतता हूँ

तुमने बताया था
मैं भी हूँ भगवान की औलाद
जो है तुम्हारा भी बाप
पर भाग्य का फल भोगता हूँ मैं
जन्म-जन्मान्तर से
इसीलिए
बेगारी में जुतता हूँ मैं
और जुतना पड़ेगा भी
चौरासी करोड़ योनियों के ख़त्म होने तक

पर अब जान लिया है मैंने
भगवान नहीं
मैं बन्दर की औलाद हूँ
जो मेरा ही नहीं तुम्हारा भी बाप है
मैंने भाग्य का फल नहीं
तुम्हारी साज़िश का फल / भोगा है
तुम्हारी व्यवस्था का जुआ पहन— जोता है हल
जिसे मेरे हाथों के हाथी ने ही— दिया है बल
मेरे पाँव के घोड़े ने
दी रफ़्तार और गति
गधे के सिर ने
मेहनत
बिना सोचे बिना समझे
लादा तुम्हारा बोझ अपने काँधे
अपनी ही ग़ुलामी को माना
अपना भाग्य

तुम चढ़ बैठे बैताल-से
मेरे कन्धों पर
सवाल का जवाब देने पर
लटका देते हो उल्टा— मेरी अक़्ल को
मैं फिर अपने कन्धे पर—
तुम्हें बैठाने के लिए
लौट-लौट आता

पर
अब नहीं लौटकर जाऊँगा मैं / तुम्हें कन्धे पर
बैठाने के लिए वापस
नहीं ठोकने दूँगा
सहनशील नाल
अपनी सोच पर!