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गधों के निकल आए हैं पैने सींग / केदारनाथ अग्रवाल
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गधों के
निकल आए हैं
पैने सींग
जमीन और आसमान को हुरेटते हैं
बैल
अब बिक गए हैं
बाजार में
कुबेर का रथ वही खींचते हैं
उन्हीं की सब्जी सींचते हैं
बेकार हो गए हैं
घाट के धोबी,
खेत के किसान
युगचेता
समय के अभिनेता
रचनाकाल: २७-०१-१९६९