भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गनीमत है / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
गनीमत है
हमारे घरों तक
धुआं पहुंचा है,
आग नहीं।
गनीमत है
हमें खबरे आतंकित कर रही हैं
युद्ध नहीं।
गनीमत है
अभी करुणा
बची हुई है
हमारे मनों में।
गनीमत है
हमें वक्त दिया जा रहा है
सोचने का।
गनीमत है
हम कल के बारे में
कुछ नहीं जानते।