भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गन्दा पानी / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
थके भारी बस्ते से
कल शाम फिर बाहर कूदा आर्कमिडीज
और दोहराने लगा
अपना सिद्धान्त
आज सुबह
एक बहुत अच्छी कविता पढ़ी थी मैंने
जितने भर में छपी है कविता
क्या उतना गन्दा पानी
छँटा होगा ?