गन्दी बस्ती-2 / शहनाज़ इमरानी
दौड़ती सड़कों और रौशनियों की चकाचौंध
ऊँची इमारतों के पीछे
जहाँ सभ्यता का कचरा पड़ा होता है
इस बस्ती को लोग
गन्दी बस्ती के नाम से जानते हैं
कच्चे आधे अधूरे घर
बेतरतीब उग आई झोंपड़ियाँ
गन्दे पर्दों के पीछे से झाँकती औरतें और बच्चे
बस्ती में रहने वाले लोगों के
कपड़ों के नाम पर चीथड़े और
ज़ुबान के नाम पर इनके पास
बेशुमार गालियाँ हैं
इनकी एक अलग दुनिया है
जिसके सारे कायदे-कानून पेट से शुरू और
पेट ही में ख़त्म होते है
भूखे, नंगे, कुपोषण और बीमारियों के बीच
बच्चे पलते और बूढ़े मर जाते
मर्द शराब और जुए में डूबे रहते है
औरतें दूसरों के घरों में बर्तन माँजतीं
कपड़े धोतीं, पोछा लगातीं
रोज़ शाम को मर्द नशे में घर आते
कभी पत्नी और बच्चों को पीटते
कभी ज़्यादा पी लेने से उल्टियाँ करते हैं
औरतें कपड़े धोतीं बच्चे पालतीं
मर्दों के हाथों पिटतीं है
फिर भी उनकी सेवा करती
और उनकी इच्छाएँ पूरी करतीं
हर एक महानगरों के हैरान
करने वाले मंज़र और रोमांच में
यह बस्तियाँ भी शामिल हैं।