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गन्दे कपड़े / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
समय को रगड़ने दो
साबुन
उठने दो झाग,
छूटते नहीं दिखते
इतने काले हैं दाग
गन्दे कपड़ों में कौन सा त्यौहार?
सहनी ही होगी-
वक्त की मार।