भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गन्धित मुस्कान / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधखिसके घूँघट ने
जगा दिए
पनघट के घट

तन्वंगी कनक-छरी बाहें
बाँध गई धरती आकाश
वृक्षों की अटपटी प्रभाती
काट गई कुहरीले पाश
पहुँच गई
छुईमुई पावनता
थाल के निकट

एक गूँज भरी छेड़खानी
तोड़ गई कलियों का मान
पान रचे होंठ से फिसल कर
फैल गई गन्धित मुस्कान
झूम उठा
अन्तर का
कालिन्दी-तट वंसी-वट