गपोड़ीलाल / प्रकाश मनु
गप्पूलाल गपोड़ीलाल,
गप्पों का कैसा है हाल,
कहाँ छिपाया इतना माल?
कुछ अपना भी रखो खयाल!
हाँ, तो तुमने मारा शेर,
हाँ जी, पूरा बब्बर शेर।
देख लिया था आँख तरेर,
इतने में ही काँपा शेर!
गिरा बिचारा झटपट-झटपट,
फिर तुमने मारे दो झापड़!
निकल गए बस उसके प्राण!
ऐसे किस्सों पर कुर्बान,
हम भी भई, गपोड़ीलाल!
गप्पूलाल गपोड़ीलाल
लाते किस्से कहाँ-कहाँ से?
जैसे सुर्ख टमाटर लाल,
खोलो जी गप्पों का टाल,
हो जोओगे माला-माल,
गप्पूलाल गपोड़ीलाल!
दादाजान तुम्हारे थे जो,
नाक थी उनकी छह फुट लंबी,
फौरन बता दिया करते थे,
खाया बैगन, खाई गोभी।
खाया तुमने करम-कल्ला,
इसीलिए दुबले हो लल्ला।
घर पर पकता क्या पकवान,
सही बताते दादाजान!
लक्कड़ हजम, हजम पत्थर भी
कर जाते जब उठती तान,
पचा गए पूरी चट्टान,
अजी आपके दादाजन!
ऐसी गप्पें बड़ी कमाल,
गप्पूलाल गपोड़ीलाल,
जेबों में है बढ़िया माल,
इसीलिए क्या बाँकी चाल!
जहाँ भी जाते गप्पूलाल,
गल जाती है इनकी दाल।
सुनने को दुनिया बेहाल,
आओ, प्यारे गप्पूलाल!