गप्प-सबद / वीरेन डंगवाल
आंधी में उड़ियो न सखी, मत आंधी में उड़ियो।
ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार
लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार
उन्हीं का होना है संसार
बस न तू आंधी में उड़ियो
धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर
अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर
बिना चप्पू-लंगर यह सैर
ज़रा आंधी में मत उड़ियो
खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोड़ा
वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोड़ा
बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग
खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग
चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख
तुड़ा दूँगी मैं आठों पैर
अरी, फिर आंधी में उड़ियो।'
देस बिराना हुआ मगर इस में ही रहना है
कहीं ना छोड़ के जान है, इसे वापस भी पाना है
बस न तू आंधी में उड़ियो। मती ना आंधी में उड़ियो।