Last modified on 18 अगस्त 2013, at 16:43

गफ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम / 'रासिख़' अज़ीमाबादी

गफ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम
सोते ही रहे आह न बेदार हुए हम

ये बे-ख़बरी देख कि जब हम-सफ़र अपने
कोसों गए तक आह ख़बरदार हुए हम

सय्याद ही से पूछो कि हम को नहीं मालूम
क्या जानिए किस तरह गिरफ़्तार हुए हम

थी चश्म कि तू रहम करेगा कभू सो हाए
ग़ुस्से के भी तेरे न सज़ा-वार हुए हम

आता ही न उस कूचे से ताबूत हमारा
दफ़्न आख़िर उसी के पस-ए-दीवार हुए हम

ज़ख़्म-ए-कुहन अपना हुआ नासूर पे ‘रासिख़’
मरहम के किसू से न तलबगार हुए हम