भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गमछा और तौलिया / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
मैंने सुना-
तौलिया गमछे से कह रहा था
तू हिंदी में सूखरहा है
सूख
मैं अंग्रेज़ी में कुछ देर
झपकी ले लेता हूं।