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गमछा / भोला पंडित प्रणयी
Kavita Kosh से
अपने परिधान के
सबसे सस्ते वस्त्र
गमछे को
मैं प्रायः अपने गले में
मित्रवत् लपेटकर रखता हूँ
और वह भी
मेरे व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाने में
दो कदम आगे ही रहता है,
वह कभी मेरे चश्मे के
मोटे शीशे को पोंछता
तो कभी जाड़े में
कानों को लपेट लेता-
फिर कभी गर्मी में
पसीना पोंछ
पंखा भी झलता है ।
वह कभी शरीर पर पड़ी
धूल झाड़ता
तो कभी लुंगी बन
मेरे गुप्तांगों को ढँक
मेरी लज्जा बचाता ।
उसका एहसानमंद हो
मेरा भी यह प्रयत्न रहता कि मैं भी
उसे अपने माथे की पगड़ी बनाकर रखूँ ।