भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गया लुट-पिट झटपट घूंघट खोलिए रै / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- रणबीर सैन उस सखी से कहता है कि आप मेरे को एक बार राजकुमारी से मिलवा दो और अपने मन में क्या सोचने लगता है

राखिए आदर मान रै, मैं देख्या चाहूं था तेरी श्यान रै।
गया लुट-पिट झटपट घूंघट खोलिए रै।टेक

तूं बिजली सी साजती,
बादल की तरियां गांजती,
छम-छम रिमझिम छनन करके, मोह लिये रै

कर दिया नीचां तै नीचा रै,
आंख रह्या मैं मींच रै,
ईब गया सुरग के बीच रै,
कर-कर, मर-मर सिर धर डले ढो लिये रै।

क्यूं क्रोध शरीर म्हं छा रह्या,
बोल कालजे नै खा रह्या,
जणुं कोए पक्षी जा रह्या,
सर-सर, फर-फर, चर-चर हंस कै तू बोलिए रै।

कहै मेहर सिंह जाट रै,
झाल ईश्क की डाट रै,
आड़ै बिछैगी खाट रै,
न्यूं हिलकै, सलकै, घलकै मंजी पै सो लिए रै।