भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गरज बरस के कभी मिट्टीयों को पानी कर / तसनीफ़ हैदर
Kavita Kosh से
गरज बरस के कभी मिट्टीयों को पानी कर
नफ़स नफ़स मिरे एहसास में रवानी कर
ये बस ज़मीन के रंगों में खो के रह गया है
बदन का रंग बदल और आसमानी कर
गुज़ार और कहीं अपने बाक़ दिन लेकिन
मिरे बदन में ठहर और फिर जवानी कर
मैं इस ताअत-ए-बे-जा से ऊब जाता हूँ
चल आज बंदा-ए-दिल मुझ से सरगरानी कर
मिटा दे आज सभी हर्फ़ लौह-ए-क़िस्मत से
फिर उस के बाद कोई दूसरी कहानी कर
ख़मोशियों के मुक़द्दर में सिर्फ़ चीख़ें हैं
इसी लिए कोई आवाज़ दरमियानी कर