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गरबीले गरीबपरवरों को एक पर्ची / संजय चतुर्वेद
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आपके जिस्म पर कमीज़ रही
ये तो इस क़ौम की तमीज़ रही
साकिन-ए-हिन्द जो रिआया है
मोहतरम आपकी कनीज़ रही
ये ज़िनां को मुआफ़ कर देगी
इसमें कमबख़्त यही चीज़ रही ।