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गरम मुगौड़ी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कड़क ठण्ड है पापा बोले,
तल दो गरम मुगौड़ी।
अम्मा ने आदेश सुना तो,
लगी काटने प्याज।
दादाजी ने कहा वाह जी,
मज़ा आएगा आज।
सुनकर हो गई चाचाजी की,
छाती गज भर चौड़ी।
तली मुगौड़ी माँ ने, पीसी,
चटनी चाची जी ने।
मिर्ची ख़ूब पड़ी तो छूटे,
सबके ख़ूब पसीने।
भनक मिली तो किचिन रूम तक,
दादी आई दौड़ी।
सी-सी, फ़ू-फ़ू करते सबने,
गरम मुगौड़ी खाई।
नाक बही मुन्नी की, आँखें,
मुन्ना कि भर आईं।
नाक फूलकर गुस्से से,
दादी की हुई पकौड़ी।
मज़ा मुगौड़ी खाने में तो,
सब लोगों को आया।
साथ-साथ में कड़क चाय का,
सबने लुत्फ़ उठाया।
चेहरे पर मुस्कान ख़ुशी के,
फिर दादी के दौड़ी।