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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 22 / नूतन प्रसाद शर्मा

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धनवा हा कातिक ला बोलिस-”पूजा बर का करे प्रबंध
यदि लछमी के स्वागत करबे, तभे खतम दुख के अनुबंध।”
कातिक किहिस-”एल्ह झन ठाकुर, लछमी हमर बाच हे बैर
ओकर इज्जत करन सकन नइ, तब लछमी हा काबर आय!
अटब हार वाले ला चिन्हथय, ओला दर्शन देथय दौड़
लछमी के सेवा तंय करथस, तब सुख ला पाहय मन बोध।”
“तंय हा मोला मुरूख समझ झन, मंय समझत तोर भाषा व्यंग
तंय कसरहिल करत दूसर पर, आंख फुटत पर के धन देख।
एकर फल ला दंय खुद पावत- तोर पास हर जिनिस अभाव
रांयरांय कर जिनगी काटत, पर नइ मिलत सुखद परिणाम।
धनवा हा कातिक पर घुड़किस, तंह सकलिस पूजा बर चीज
ढरकिस बेर सांझ हा आगे- शुरू होत पूजा के खेल।
धनवा के घर बजत फटाका, दगदग दिखत हवय घर द्वार
अंधियारा के नाम बुतागे, रगबग बरत घीव के दीप।
कातिक हा मन मं सोचत हे- काबर दुवाभेद के खेल
घिव के दिया बरत धनवा घर, हमर इहां नइ अरसी तेल।
धनवा कथय- घिव हा गुन देथय, एकर खाय भोगाथय देह
थोरिक मंहू चोरा के खावंव, तंहने बन जाहंव बलवान।
एक दिया भर घीव चोराइस उहां ले छरकिस लउहा।
तात घीव हा गोड़ मं गिरगे उबलिस चकचक फोरा।
कातिक हा करला के केंघरत, ओकर बढ़त जलन अउ दाह
दाईददा के नामे सुमरत, कउनो करय मदद ला दौड़।
सुखी हा जम्मों दृष्य ला देखिस, मगर मदद ले जीव हटैस
धनसहाय के कान ला फूंकत, बढ़ चढ़ के चुगली ला खैस।
बोलिस-”आय हवय सुभ मुहरूत, धन सुख खुशी आय के टेम
लेकिन नीयत खोर कातिक हा, अशुभ काम ला करदिस आज।”
धनवा हा घटना ला जानिस, कातिक पर बतात हे क्रोध
अपन डहर कातिक ला झींकिस, धान के पैर कलारी चोख।
लोर के उपटत गाल ला मारिस, चिन्हा दिखत हे टकटक लाल
ओन्हारी के कुंड़ चिरथय तब, ओकर चिन्ह दिखत हे साफ।
धनवा बकिस-“तिजऊ के अंसअस, जान पाय नइ लहू-प्रभाव
सोमना ला कतको चतरावत, पर ओकर जड़ रहिथय खेत।
तोर सइत्ता छुटत रिहिस हे, मंगते घिव मुंह ला फुटकार
एक किलो अस देतेंव मंय खुद, ओकर संग मं नोट हजार।”
धनवा अब पूजा मं भिड़थय, आगे सुभ मुहरूत के टेम
पूजा मं फगनी संग बइठिस, खेलत पास पुत्र मनबोध।
नवा नवा कपड़ा पहिरे हें, महमावत हे अत्तर सेन्ट
सम्हरे हे मनबोध सुघर अक, दिखत हवय जस नंदी बैल।
लछमी चित्र हवय आगुच मं, गहना मन हा रखे परात-
सुर्रा खोपिया तितली खोटला, टिकली बारी फुली बुलाक।
कोपरबेला हंसली पुतरी, बंहुटा सुंतिया पिन संग गोफ
अंइठी करधन तोड़ा चुटकी, गहना अतिक बात नइ फोंक।
लछमी मं चढ़ात दूनों झन, नरियर मिठ फल चांउर दूब
आंख मूंद के मिट का जाथंय, बिनती करिन दुनों झन खूब।
सुखी उपस्थित हवय कलेचुप, देखत सिरिफ मुआ अस बांध
धनवा के पूजा ला जांचत, ओकर अक्कल हा भट जात।
सुखी झकनकागे जब पाइस- एक पसर भर मिठई-प्रसाद
खाइस तंह ओंड़ा दलगिरहा, धान बढ़त पाके जल खाद।
बोलिस सुखी-”कहां पाये हंव, आज उड़ाय जेन मंय चीज
मंय हा हांका पार के बोलत- रहिहंय सदा इहिच दहलीज।
ए जग मं कतको मनसे हें पर नइ पीयंव मानी।
तंय हा छाहित हवस मोर पर नइ चढ़ात हंव पानी।
एकर बाद सुखी हा सल्टिस, धनसहाय ला चढ़ा अकास
जेन काम कोतल मन करथंय, करत प्रशंसा सबके पास।
सनम हा तड़ ले सुखी ला बोलिस-”तंय लुहाय चुगली कर आज
कातिक ला पकड़ाय तिंही भिड़, पाय एवज मं काय इनाम?”
“गांव के रददा चतरावत हंव, तुम झन लेव चोर के पक्ष
अइसन मं पर जहय संधाड़ा, छाती तान घूमिहिय चोर।”
सुखी के तर्क ला सनम हा काटिस-”हवय कोन ला बद के साध
लेकिन धन के भेद के कारन, मनसे हा करथय अपराध।”
“अतका बात बोल दूसर तिर, मंय जानत पुंजलग के रंग
उंकर विरूद्ध अगर हम जावत, टंगिया गिरिहय खुद के अंग।
दीन के खटला भउजी होथय, बंड के औरत बहिनी आय
हागे कुला छोटे मधुमक्खी, भांवर ला सब झन डर्रात।
पिरपिटटी ला खेदत लइका, चिचिया भागत डोमी देख
हरिना के तन हाथ ला फेरत, पर धिधियात बाध ला देख।”
“भांवर के मंदरस निकलत हे, जहर के औषधि तक बन जात
बघवा हा सरकस मं नाचत, बंड हगत जब हक मर जात।”
अधरतिया के नर नाही मन, झड़ी के घर बाजा घर गीन
गउरा गउरी रखे हे उंहचे, परघावत इज्जत के साथ।
गउरा गउरी ला मुड़ पर रख, गउरा चंवरा के तिर लैन
फूल हा कुचरे रखे उहां पर, देव ला चंवरा मं पधरैन।
माटी के देवता मन मोहत, चमकत हे सनपना के भीथ
मेमरी सिलियारी गोंदाफुल, सब तन बरत रगबगा दीप।
देव के भांवर रखे हे करसा, करसा मं उतरे हे फूल
भीतर भरे फरा अउ मुठिया, लइका हेर के खावत झूल।
बाजा बजत देव मन नाचत धर के सांकर बाना।
खांद पकड़ के नारी मन चांउर छित गावत गाना।