भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंय हा छानी ला छावत हंव, ताकि मुंदाय जतिक हे छेद
अइसन मं पानी हा गिरिहय, तब ले घर अंदर नइ जाय।”
“बेटी, काम करत हस उत्तम, पर शंका ब्यापत हे एक-
यदि छानी पर तोला देखत, मनसे मन हा कहहीं काय?”
“मनसे मन हा इही बोलिहंय- “अंकालू के टूरी एक
ओहर छानी पर बइठिस अउ, करत रिहिस खपरा ला ठीक।
ददा, तंय अड़बड़ झन सोचे कर, मनसे मन हा बोलत काय
मिहनत कर सुख लाभ ला पावन, पर ला देन मदद सुख चैन।”
“मंय हा तोर ले हरदम हारत, तंय बइला ला नहवा लेत
गाय के दूध ला घलो दूहथस, कठिन काम तक करथस पूर्ण।
अच्छा, नीचे तुरुत उतर तंय, मोला लगत भयंकर भूख
जउन पकाय परस मंय खाहंव, सहना कठिन नींद अउ भूख।”
दुखिया हा नीचे उतरिस तंह, पिनकू के मां कोदिया अैस
दुखिया ओकर स्वागत करथय -“मौसी, आज आय तंय ठीक।
मगर काम बिन कोन हा आवत, अगर तोर कुछ अटके काम
मोर पास तंय सच सच फुरिया, तोर जरुरत होही पूर्ण।”
कोदिया बोलिस- “सच पूछत हस, तब बतात मंय निश्छल बात
मोर पास हे एक ठक बखरी, उहां लगाय चहत हंव साग।
मोर पास नइ तुमा करेला, ना बरबट्टी तुरई के बीज
सब तिर पारे हंव गोहार मंय, पर लहुटे हंव रीता हाथ।
हारे दांव तोर तिर आएंव तंय सब साद पुरोबे।
जउन जिनिस बर इहां आय हंव तिंहिच मदद पहुंचाबे।
दुखिया किहिस -“प्रशंसा झन कर, बिगड़ जहय आदत हा मोर
तंय हा साग के बीजा मांगत, तोर हाथ पाहय सब चीज।”
दुखिया हा कोदिया ला संउपिस, सबो साग के ठोसलग बीज
कोदिया किहिस -“बता तंय कीमत, एकर कतरा रुपिया देंव?”
दुखिया कथय -“लेंव नइ रुपिया, जहां साग हा फरिहय खूब
मंय चोराय बर बारी जाहंव, करिहंव उहां चोराय के काम।
तंय मोला टकटक देख लेबे, मगर क्षमा करबे सब दोष
खूब साग ला टोरन देबे, कीमत हा हो जहय वसूल।”
“तंय हो गेस अटल युवती पर, बचपन के चंचलता शेष
नवा आदमी धोखा खाही- दुखिया हवय निर्दयी क्रूर।
पर मंय तोर नेरुवा तक जानत, तोर नहीं मं हे स्वीकार
छिपे क्रोध मं सहृदयता हा, छिपे घृणा मं आदर स्नेह।”
कोदिया साग के बीजा ला धर, उहां ले रेंगिस मन संतोष
अंकालू हा दुखिया ला कहिथय- “तोर बहुत झन रिश्तेदार।
लहुट जथय तोर मौसी हा तंह, गप ले आथय मामी तोर
मामी लहुटत स्वार्थ सिधो के, तुरुत तोर काकी हा आत।
आखिर कतका हें संबंधी, गिनती करा गणित ला जोड़
गांव मं जतका बुढ़ूवा बुजरुक, जमों आंय तोर रिश्तेदार ”
दुखिया किहिस- “तिंही बोले हस बुजरुक मन ला आदर देव
तब सब ला प्रणाम करथंव मंय, उंकर ले मंगथंव आशीर्वाद।”
अंकालू ला भूख हा ब्यापत, दुखिया परसिस भोजन शीघ्र
अंकालू हा जेवन नावत, बड़े कौर धर आंख पंड़ेर।
इही बीच मं दुखिया बोलिस -“लड़त फकीरा अउ सोनसाय
उंकर विवाद सुने हस तंय हा, आखिर मं का निर्णय होय?”
अंकालू बोलिस -“का होहय-उहिच होय जे निश्चय पूर्व
याने सबल ले निर्बल हारत, कपटी ले निश्छल के हार।
मोतीखेत फकीरा के सुन, पर सोनू के हक लग गीस
आज धनी ले दीन हार गिस, हम बोकबोक देखत रहि गेन।”
“तुन जानत अन्याय हा होहय, फिर काबर मुड़ नावत व्यर्थ!
अन्यायी के मदद करत तुम, तुम्हर घलो हे नंगत दोष।”
“अगर अपन घर लुका के रहिबो, कभु अन्याय खत्म नइ होय
हम ओ जगह मं खत्तम जाबो, गलत न्याय अउ अत्याचार।
अन्यायी के काम जांचबो, तौल तौलबो ओकर शक्ति
लगही पता पोल दुर्बलता, उही ला कहिबो पास तुम्हार।
निपटे के उपाय ला सुनिहव, अनियायी संग करिहव युद्ध
थोथना भार उलंडही दुश्मन, युद्ध मं तुम्हर निश्चय जीत।”
“ददा, तंय बतावत हस ठंउका, झप नइ मिलय ठिंहा उद्देश्य
कई पीढ़ी हा आहुति देथय, भावी हा अमरत उद्देश्य।”
“अब मोला विश्वास तोर पर, तंय चुन सकत स्वयं के राह
जइसे मछरी के पीला मन, तउरे बर सीखत हें आप।”
“हां, अब चर्चा बंद करन हम, शांति साथ तुम जेवन लेव
समय शांत हो- बहस होय झन, आत अनंद देह ला लाभ।”
अंकालू हा जेवन नावत, मुंह मं लेगत सरलग कौंर
बस जेवन तक ध्यान ला राखत, बुद्धि जात नइ दूसर ओर।
बछर हा जइसे क्रमशः बढ़थय, घंटा पहट दिवस सप्ताह
होगिस खतम धान के बांवत, कृषक धरत भर्री के राह।
कोदो बीज मं मिला अमारी- तिली बाजरा मूंग उरीद
पटुवा खमस मिंझार छींच दिन, चलत हवय जस जुन्ना रीत।
एकर बाद मं नांगर जोंतिन, हांक दून आंतर नइ होत
जलगस अंड़े बुता नइ उरकिस, मारन कहां सकत गप गोठ!
धान जाम के कुछ अउ सरकिस, हर्षित होत कृषक हा देख
दूबी कांद हेर के फटकत, बिरता ला पहुंचय झन हानि।
ददा अपन बेटा ला पालत, करथय उदिम भविष्य बनाय
कृषक चिभिक कर खेत सजावत, सनसन उठय फसल के बाद।
अपन खेत मं गीस गरीबा देखत धान के पौधा।
ओमन बढ़त सनसना तंहने होत प्रसन्न गरीबा।