भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गरीबी के दिनों में / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
महँगी शर्ट पहनने के बाद दफ्तर नहीं
मौसी के घर जाने की इच्छा होती है।
बहुत याद आती है उस दोस्त की
जो छूट गया जामुन से गिरकर
अदल-बदल लेते थे जिनसे कपड़े।
महँगी शर्ट पहनने के बाद माँ को देखता हूँ
कि कैसे खिलता है एक का सुख दूसरे के चेहरे पर
महँगी शर्ट पहनने के बाद पिता की तरफ देखता हूँ
गया वक्त लौट नहीं सकता
कह नहीं पाता एक शर्ट आपके लिए...