भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गरीबी / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
हम्में गरीब छियै
खुद केरोॅ वास्तें
ओकरा वास्तें नै
ओकरा वास्तें छियै हम्में
एगोॅ बड़का चेक
जबेॅ चाहै छै
वें भँजाय लै छै हमरा
बाजारोॅ में
ऊ भंजैतेॅ रहै छै हमरोॅ
बाजारोॅ में
सभ्भै सें जादा लाभ कमाय छै वें
हमरा भँजाय केॅ
चुनावोॅ में
वें बचाय केॅ राखै लेॅ चाहै छै हमरा
यही लेली
बाँकी समय
भँजाय वास्तें चुनाव में
जे कि
वें लाभ उठाबेॅ सकै
बड़ोॅ सें बड़ोॅ ।