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गरीब किसान की जिन्दगी क्युकर बितै सै मर पड़कै / मेहर सिंह

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देख रोंगटे खड़े होगे या मेरी छाती धड़कै
गरीब किसान की जिन्दगी क्युकर बितै सै मर पड़कै।टेक

गर्मी म्हं आकाश तपै सै कोरी आग बरसती
निचै धरती आग उगलती दुनिया पड़ै तरसती
पाट्टी धोती टूट्टे लित्तर पेट म्हं आग सिलगती
शिखर दुफारी पड़े पसीना छातां कैड ना दिखती
आधी रात तक पाणी बाहवै फेर भी उठै तड़कै।

सामण भादवा और क्यार म्हं बादल जोर के छारे
बिजली चमकै बादल गरजै सारे शोर मचारे
गेंड़वे मिंढ़क कान सुलाई फिरै खेत म्हं सारे
सांप संपोलिया बिच्छू बिसीयर फन ऊपरनै ठारे
कांधै कस्सी हाथ म्हं रस्सी चालै गोडयां पाणी म्हं बड़कै।

मंगसर पोह म्हं बर्फ पड़ै सै आक तलक मुरझावै
पाट्या कुड़ता दोहर पुराणी खेतां म्हं पैदल जावै
ऊपर पाला निचै पाणी हाथ म्हं कस्सी ठावै
थर-थर कांपैं जाड़ी बाजै जाड्डा पाड़ के खावै
सुख का सांस कदे ना आवै खाट म्हं पड़ै अकड़ कै।

राज काज सब इसके ऊपर जो शासन सरकार करै
सारी मण्डी मील तिजारत छोटा बड़ा व्यापार करै
कपड़ा लत्ता नाज दाल और धनियां मिर्च तैयार करै
एक मिनट बी सरै ना इस बिन फेर बी ना कोए प्यार करै
जाट मेहर सिंह सोच फिकर म्हं तेरी अंखियां फड़कै।