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गरीब की लडकी / भारती पंडित
Kavita Kosh से
नहीं सोती है पूरी नींद
करती माँ की हिदायत का पालन
कि नींद में न आ जाये कोई सपना सलोना
जिसे पाने को मचल पड़े मन की नदी
अपने प्रवाह को अनियंत्रित करके ..
गरीब की लड़की
जानती है सीमाएं अपनी कि
अव्वल तो कोख में ही मार दी जाएगी ,
जी गयी तो अनचाही सी दुलार दी जाएगी ,
पढ़ना चाहेगी तो ब्याह दी जायेगी,
बोझ सी दूजे आँगन उतार दी जाएगी ....
गरीब की लड़की
फिर भी झपका ही लेती है उनींदी पलकें ,
देखने को सुनहले जीवन का सुकुमार सपना ,
क्योंकि बचपन में दादी की कहानी में सुना था कि
सपने भी कभी- कभी
सच हो जाया करते हैं....