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गर्जना तुम्हारी / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
कुछ बात न बनेगी, क्रांति थम जाने से
बग़ावत बुलंद होगी, साथी तेरे घराने से
यारों जहाँ में देखो तो, बग़ावत बुलंद है
एक शोला जब भड़का है, तुम्हारे घराने से
बादल नहीं गरजते, तुम्हारी गर्जना के सामने
सावन नहीं रोता, तुम्हारी वेदना के सामने
मौसम का चक्र तुम्हें, उलझाके मार डालेगा
अरे, आंधी समझो, पहले कश्तियां चलाने से
अपमानित धरा पे, सम्मान न पाने वालों को
अनुराग नहीं मिलता, दीपक से दिया जलाने से
हमारा जीवन फूल बिन, मुरझायी हुई कली है
चहकती नहीं धूप में, पंखुड़ियां सूख जाने से
उलटी धाराओं में, जीवन की लहर बढ़ती है
मनुष्य की प्रतिष्ठा को, दलित एक बनाने में
फसल के बीच, घास जैसी है दलित ज़िन्दगी
जड़ से उखाड़ती है, चुन हाथ के निराने से