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गर्दभ भाई फगुआ लाए / कन्हैयालाल मत्त

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एक कीमती साड़ी लेकर,
तीन किलो रसगुल्ले तर-से,
फिर इस साल मनाने होली,
निकल पड़े गर्दभ जी घर से।

बंदर जी के दरवाजे पर,
बड़े जोर से अलख जगाया-
'भाभी जी, स्वीकार करो यह,
मन-पसंद फगुआ मैं लाया!'

हँसकर बंदर भाई बोले-
'प्रथम दूधिया भंग छनेगी,
रसगुल्लों के साथ, प्रेम से-
होली अब की बार मनेगी।'

गर्दभ जी पी गए डटाडट,
लगी भंग कुछ रंग दिखाने,
भाभी जी ने अवसर देखा,
देवर जी को चलीं छकाने।

बोलीं-'लाला, मौज-मजे से,
होली का त्योहार मनाओ,
मैं ढोलक पर ताल लगाऊँ,
तुम बढ़िया-सा नाच दिखाओ।'

नाच दिखाने लगे ठुमक-ठुम,
गर्दभ जी शेखी के मारे,
बंदर भाई नजर बचाकर,
गटक गए रसगुल्ले सारे!