गर्दिशों ने बहुत सताया है
हर क़दम पर ही आज़माया है|
दफ़्न हैं राज़ कितने सीने में
हर्फ् लब पर कभी न आया है|
मुझको हंस हंस के मेरे साक़ी ने
उम्र भर ज़हर ही पिलाया है|
ज़ोर मौजों का खूब था लेकिन
कोई कश्ती निकाल लाया है|
मुस्कराया है इस अदा से वो
जैसे ख़त का जवाब आया है|
बनके अनजान उसने फिर मेरे
दिल के तारों को झन-झनाया है|
मुझको ठहरा दिया कहां ‘देवी’
सर पे छत है न कोई साया है|