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गर्दिश की रिक़ाबत से झगड़े के लिए था / हनीफ़ तरीन

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गर्दिश की रिक़ाबत से झगड़े के लिए था
जो अहद मेरा तितली पकड़ने के लिए था

जिस के लिए सदियाँ कई तावान में दी हैं
वो लम्हा तो मिट्टी में जकड़ने के लिए था

हालात ने की जान के जब दस्त-दराज़ी
हर सुलह का पहलू ही जगड़ने के लिए था

मुंह ज़ोरियाँ क्यूँ मुझ से सज़ा-वार थीं उस को
फैलाओ जहाँ उस को सुकड़ने के लिए था

क़ुर्बान थीं बालीदगियाँ नख़्ल-ए-तलब पर
क्या जोश-ए-नुमू आप उखाड़ने के लिए था

पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था