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गर्मकोट / कुमार कृष्ण

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वह है भूरे पंख वाली चिड़िया
साल भर करती है इन्तजार
आए सफेद कपड़ों वाली सर्दी
वह सौंप दे अपनी चोंच में छुपाई हुई
बची हुई आग
रामपुरी भेड़ की उम्मीद है सर्दी का कोट
वह है किसान का बचा हुआ विश्वास
बुनकर की बांहें

गर्मकोट छुपा कर रखता है अपनी जेबों में
थोड़ी-सी सर्दी, थोड़ी-सी गर्मी
थोड़े से सुख, थोड़े से दुःख
थोड़ा-सा डर, छोटा-सा घर
उसी में छुपे रहते हैं कहीं
ठंढ से लड़ने के तमाम औजार

वह लड़ता है मौसम के खिलाफ
वह लड़ता है इस उम्मीद के साथ
एक दिन आएगा बसन्त उसके पास
सौंप देगा वह एक जीवित मनुष्य
बेशुमार सपनों के साथ उसके पास

खूंटी पर लटकते हुए गर्मकोट
अपनी ही परछांई से डरने लगा है
मौसम के बदलते रंगों को देखकर
हिम्मत और हौसला खोने लगा है
गर्मकोट बटनों का व्याकरण
एक बार फिर से पढ़ने लगा है।