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गर्मियों की यह तपिश भी चाँदनी हो जायेगी / ‘अना’ क़ासमी

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गर्मियों की यह तपिश भी चाँदनी हो जायेगी
तुमसे मिल कर दोपहर भी शबनमी हो जायेगी

हमने रोका कब है उसको हाँ मगर इतना कहा
धूप में फिरती रही तो सांवली हो जायेगी

खिड़कियों से झांकने का फ़न उसे आ जायेगा
बेल कमरे में भी रह कर गर बड़ी हो जायेगी

हमको ही इस खेल में रग़बत नहीं वरना सुनो
कोई लड़की मेहरबां तो आज भी हो जायेगी

फिर किसी आवाज़ पर लब्बैक दिल ने कह दिया
बैठे-ठांढ़े फिर कोई आफत खड़ी हो जायेगी

ये हक़ीक़त की नहीं मिट्टी की हैं सब मूरतें
आप छू लेंगे जिसे वो आपकी हो जायेगी

है ख़ुदा ही मेहरबां वरना कभी सोचा न था
जान की दुश्मन थी जो वो ज़िन्दगी हो जायेगी

अपने घर रखनी थी हमको एक छोटी सी नशिस्त
चांद पर से आपकी कब वापसी हो जायेगी

पब्लिशर, नक़्क़ाद, बुकस्टाल सब उनके ही हैं
कुछ भी बक दें कुछ भी लिख दें शायरी हो जायेगी