गर्मी-छुट्टी / शशिधर कुमर 'विदेह'
प्रवासी मैथिल धिया-पुताक नजरि सँ
आबि रहल छै गर्मी-छुट्टी,
जयबै हम सभ गाम।
कऽलम-गाछी-पोखरि घुमबै,
घुमबै खेत-खरिहान॥
अप्पन तुरिया नेना-भुटका,
गामक संगी-साथी।
बाबा-बाबी, भैय्या-भौजी,
भेटथिन्ह कक्का-काकी।
संगतुरिया सभ भाए-बहिन संग,
घुमबै अङ्गना-दलान।
आबि रहल छै॥
कहियो फलना केर हकार,
कहियो चिलना केर भोज।
कहियो किर्त्तन-अष्टयाम,
नाटक-नौटंकीक जोश।
राति–राति भरि जागि–जागि कऽ,
रामलीला लए जान।
आबि रहल छै॥
अन्हर-बिहारि, उठलै बिर्रो,
चल बीछए आमक टिकुला।
के सुनैछ आ के डरैछ,
की भूत साँप आ ठनका।
बैर-जिलेबी-बड़हर-कटहर,
जामुन-आम-लताम।
आबि रहल छै॥
उपनयनक धमगज्जरि कत्तहु,
कतहु अबैछ बरियाती।
मूड़न-जाग-दुरागमन देखी,
कतहु बनी सरियाती।
कतहु पमरिया नाचि रहल अछि,
भगता ब्रम्हस्थान।
आबि रहल छै॥
कजरी-लगनी-बटगवनी,
आ बाबा केर नचारी।
भोरे-भोरे गीत पराती,
गाबथि बुढ़िया दादी।
कतहु गीत सलहेशक गाबथि,
सोहर आ समदाओन।
आबि रहल छै॥