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गर्मी आई / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
गर्मी आई गर्मी आई
पंखे कूलर कुल्फी लाई।
सूरज दादा लगे भड़कने
धूप करारी लगी कड़कने,
दरखत की छाया मन भाई
गर्मी आई गर्मी आई
सूनी सड़कें सूनी गलियाँ
बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ,
दोपहरी में बंद घुमाई
गर्मी आई गर्मी आई।
बाहर जाना ही आफत है
घर के अन्दर कुछ राहत है,
बिन बिजली सांसें घबराई
गर्मी आई गर्मी आई।
अमरस शरबत और ठण्डाई
आईसक्रीम सबके मन भाई
‘कुल्फी लूं’ मुन्नी चिल्लाई
गर्मी आई गर्मी आई।