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गर्मी का मौसम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
जब गर्मी का मौसम आता,
नदी नहाने हम जाते थे।
पानी में छप-छप करते थे,
धूम मचाते मस्ताते थे।
इतना निर्मल नीला पानी,
पैंदे की सीपी दिखती थी।
तल में नीचे चांदी जैसी,
चम-चम रेत मचलती-सी थी।
जल के भीतर उधम करते,
चुल्लू से पानी पी जाते।
अभी तैरना सीखे ही थे,
नदी पार कई बार हो आते।
'बहुत हो गया बाहर निकलो' ,
बापू तट पर से चिल्लाते।
'अभी आ रहे बापू' कहकर,
हम डुबकी फिर से ले जाते।
अब तो हाल नदी का यह है,
बीमारी का घर लगती है।
उसकी एक बूंद भी हमको,
तीखा एक ज़हर लगती है।
कहाँ गए वह घाट सलोने,
कहाँ गया वह नीला पानी।
राम पराजित हैं रावण से,
किसने बदली राम कहानी।
क्यों हैं गंदे घाट किनारे?
क्यों दूषित नदिया का पानी?
यह पूछो अम्मा बापू से,
इस पर लिखना एक कहानी।