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गर ख़ामुशी से फ़ायदा इख़फ़ा-ए-हाल है / ग़ालिब

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गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़फ़ा-ए-हाल है
ख़ुश हूँ कि मेरी बात समझनी महाल है

किस को सुनाऊँ हसरत-ए-इज़हार का गिला
दिल फ़र्द-ए-जमा-ओ-ख़र्ज-ए-ज़बाँ-हा-ए-लाल है

किस पर्दे में है आइना-पर्दाज़ ऐ ख़ुदा
रहमत के उज़्र ख़्वाह-ए-लब-ए-बे-सवाल है

है है ख़ुदा-नख़्वास्ता वो और दुश्मनी
ऐ शौक-ए-मुनफ़इल ये तुझे क्या ख़याल है

मुश्कीं लिबास-ए-काबा अली के क़दम से जान
नाफ़-ए-ज़मीन है न कि नाफ़-ए-गज़ाल है

वहशत पे मेरी अरस-ए-आफ़ाक़ तंग था
दरया ज़मीन को अर्क़-ए-इनफ़आल है

हस्ती के मत फ़रेब में आजाइयो ‘असद’
आलम तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है.