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गर दुख नहीं है मेरे लहू के बहाव पर / अमरेन्द्र
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गर दुख नहीं है मेरे लहू के बहाव पर
ऐसे तो छिड़किए न नमक मेरे घाव पर
मंजिल से जहाँ दूर वहीं लौटना मुश्किल
हम आ गए हैं घूम के कैसे पड़ाव पर
कैसे कहूँ कि पीठ पर उसकी न होंगे घाव
सेंका गया है हर कोई जबकि अलाव पर
मैं क्या कहूँ कि मन में तमन्नाएँ क्या उठतीं
बारिस में जब भी होता है दरिया बहाव पर
चेहरे पे हँसी मन में द्वेष-इतना भेद है
यह देश कैसे चल रहा है इस सोभाव पर
बेहतर है लोग अपने घरों से निकल पड़े
दरिया का बाँध आ गया है जब कटाव पर
मानेंगे नहीं लोग ये वैसे ये सच ही है
लाया है मैंने दरिया को लादे ही नाव पर
अब जो भी होगा होगा देखा जाएगा अमरेन्द्र
पहले तो दिल था दाव पर अब जां है दाव पर।