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गर नहीं है रास्ता तो रास्ता पैदा करो / गिरिराज शरण अग्रवाल

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गर नहीं है रास्ता तो रास्ता पैदा करो
ज़िंदगी में ज़िंदगी का हौसला पैदा करो

हर अँधेरे को नई इक दीपमाला भेंट दो
हर निराशा से नई संभावना पैदा करो

दे सको तो मोम को भी रूप दो फ़ौलाद का
कर सको तो पत्थरों में आईना पैदा करो

दर्ज कर दो कल के काग़ज़ पर भी अपने दस्तख़त
आज के जीवन से कल का सिलसिला पैदा करो

ले के अंबर से धरा तक जितने भी संदर्भ हैं
सब तुम्हारे हैं, सभी से वास्ता पैदा करो