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गर मशवरा अच्छा लगे स्वीकार कीजिए / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
गर मशवरा अच्छा लगे स्वीकार कीजिए
तूफ़ान के थमने का इंतिज़ार कीजिए
हम से भी पहले कितनों ने महसूस किया है
अच्छी हो कोई बात तो सौ बार कीजिए
मैं वक़्त हूँ,या आपका नसीब हूँ जनाब
लम्हे ये क़ीमती हैं न बेकार कीजिए
फिर यह न सोचिये नफ़ा नुक़्साँ हुआ है क्या
जब प्यार कीजिए तो सिर्फ़ प्यार कीजिए
बिखरे तो वह ख़ुशबू की तरह शोर मचा दे
दो दिन की ज़िंदगी है यह गुलज़ार कीजिए
मंज़िल की तलब है तो हौसले भी हों बुलंद
दरिया हो बीच में तो उसे पार कीजिए
हो जायगा वो बेवफ़ा ढूँढेंगे फिर कहाँ
दिल में उसे बिठा के ही दीदार कीजिए