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गर हिम्मत है जज़्बा है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
गर हिम्मत है जज़्बा है तो पत्थर बनता पानी है।
तेरे संकल्पों में छुपी, सफलता की निशानी है।
इस दुनिया में अब किसी को कमतर भी ना जानों,
कल से बेहतर आज है उनकी, यह सबको समझानी है।
गौरैया बच्चों को खिलाने लायी धान की बाली है,
घर में है दो नन्हें बच्चे, जो इसकी निशानी है।
जिसको कोई पढ़ न सका, आज तलक वह राज है,
कैसी स्याही से लिखी भर उसने ग़ज़ब कहानी है।
सुबह सवेरे उठ के जाते हो तुम तो दूर बहुत ही,
साथ हमें भी ले लो अपने, रुत ये बड़ी सुहानी है।
टूटे-फूटे शब्दों में मैं भी तो कुछ कहता हूँ,
तू सुनाने के लायक नहीं, जो भी मुझे सुनानी है।
हमसे जो है शिकवा शिकायत, आज ही उसको दूर करो,
दुनिया से ‘प्रभात’ सभी को, एक न एक दिन जानी है।