धूलिकण तुच्छ हैं, कंचन को ग़लतफहमी है,
अश्रुकण व्यर्थ हैं, पाहन को ग़लतफहमी है
ग़ैर के रूप पर इतराने की आदत है इसे-
बस, इसी दर्प से दर्पण को ग़लतफहमी है।
धूलिकण तुच्छ हैं, कंचन को ग़लतफहमी है,
अश्रुकण व्यर्थ हैं, पाहन को ग़लतफहमी है
ग़ैर के रूप पर इतराने की आदत है इसे-
बस, इसी दर्प से दर्पण को ग़लतफहमी है।