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गलतियाँ की हैं अगर स्वीकार होना चाहिये / रंजना वर्मा

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गलतियाँ की हैं अगर स्वीकार होना चाहिये
काम से अपने सभी को प्यार होना चाहिये

वक्त हो अनुकूल ऐसा तो सदा होता नहीं
हर परिस्थिति के लिये तैयार होना चाहिये

सोच पर अपनी बराबर हक़ सभी का है यहाँ
चाहतों का भी कभी इज़हार होना चाहिये

यूँ बढा कर हाथ कोई फूल को तोड़े नहीं
जो सुरक्षा कर सके वो खार होना चाहिये

हो तरक्की देश की चाहत यही सबकी मगर
सोच शासन की नहीं बीमार होना चाहिये

हक सभी का है बराबर यह समझने के लिये
क्यों किसी को फ़र्ज़ से इनकार होना चाहिये

आइये हम आप लिक्खें प्रेम के इतिहास को
दुश्मनी की अब नहीं तक़रार होना चाहिये