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गलवड़ि पर अंसधरि कु दाग रौण द्ये / जयवर्धन काण्डपाल

गलवड़ि पर अंसधरि कु दाग रौण द्ये
यनि च सदा बटि म्येरू भाग रौण द्ये
अब्बि होर भीजण ये रूमालन म्येरा
न धौर तत सुखोंण जाग, जाग रौण द्ये
नि बद्लण्यां भाग म्येरू पता चऽ मैं
पुछ्यरौं, मंदिरौं तु दौड़ भाग रौण द्ये
जु त्वेते भला काम कनो हुरस्योन्दि
जिकुड़ि मां जगणी तीं आग रौण द्ये
पितरों कि याद दिलौंदु वत ना भगो
तु मांदणिम बैठ्यों ते काग रौण द्ये
कथ्या च मैंते दुःख अर कबार बटिन
रौण द्ये तु ये गुणा-भाग रौण द्ये|