भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गला भी प्यास का चटका नहीं है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गला भी प्यास का चटका नहीं है
अभी बादल कोई बरसा नहीं है

तुम्हारी आँख में सूरत निहारी
हमारे पास आईना नहीं है

चले आओ बुलाते हैं तुम्हे हम
यहाँ दूजा कोई रस्ता नहीं है

सुना है बेवफा तुम हो गये हो
न ये कहना कोई रिश्ता नहीं है

लिये मुट्ठी नमक की फिर रहा वो
पता ही जख़्म का लगता नहीं है

तुम्हारी ही परस्तिश की हमेशा
खुदा को तो कभी देखा नहीं है

तुम्हारी राह में पलकें बिछायीं
चले आओ कि दिल लगता नहीं है