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गला भी प्यास का चटका नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
गला भी प्यास का चटका नहीं है
अभी बादल कोई बरसा नहीं है
तुम्हारी आँख में सूरत निहारी
हमारे पास आईना नहीं है
चले आओ बुलाते हैं तुम्हे हम
यहाँ दूजा कोई रस्ता नहीं है
सुना है बेवफा तुम हो गये हो
न ये कहना कोई रिश्ता नहीं है
लिये मुट्ठी नमक की फिर रहा वो
पता ही जख़्म का लगता नहीं है
तुम्हारी ही परस्तिश की हमेशा
खुदा को तो कभी देखा नहीं है
तुम्हारी राह में पलकें बिछायीं
चले आओ कि दिल लगता नहीं है