भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गली-गली अजब तमाशा हो गया है / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
गली गली अजब तमाशा हो गया है
हिमाकत जैसे सवाल पूछना हो गया है
वायज़ का ये कहना है कि जियो जैसे मैं कहूँ
उठायी मैंने जो उंगली तो फ़साना हो गया है
वो भरता रहा ज़हर मेरी रगों में अपने फ़िरके का
छोडा जो फ़िरका मैंने तो मुआशरा बेगाना हो गया है
वो कहते रहे कि आयेगा अमन का इंकलाब एक दिन
और बात कि रस्मे जीस्त मुश्किल निभाना हो गया है
जब से हुई है नाफ़िज़ हुकुमते मुल्लाह मेरे शहर में
इंसानियत के नातों से घर मेरा अंजाना हो गया है
गिर गिर के "शम्स" खुद संभल जायेगा एक दिन
रोना हुआ है ज़्यादा कम हंसना हंसाना हो गया है