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गली-गली नफ़रत देती अब रोज़ प्यार की गारंटी / अशोक अंजुम
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गली-गली नफ़रत देती अब रोज़ प्यार की गारंटी
वही मदारी और वही है बार-बार की गारंटी
यदि सरकार बनेगी अपनी चहुंदिस खुशहाली होगी
बाल मिलें सब गंजों को ये इश्तहार की गारंटी
जिनके कारण छंटनी होकर रोटी को मोहताज हुए
देने लगे वही व्यापारी रोज़गार की गारंटी
मुफ़्तखोर जनता नाकारा कर दी कुर्सी की खातिर
यूं कि दवाएं बांटें जैसे खुद बुखार की गारंटी
किसको चुने, हराए किसको, उहापोह में है जनता
हर प्रत्याशी लेकर आया है बहार की गारंटी
हर हिरनी को आश्वासन है ना शिकार होगा उसका
और भेड़ियों को हर दल से फुल शिकार की गारंटी