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गली-गली बिछल बा काँटा / धीरेन्द्र बहादुर 'चाँद'
Kavita Kosh से
गली-गली
बिछल बा काँटा
बैंगनी, सिन्दुरी
पीला सपाटा
मन में उठाल बा
खेतन में ताल बा
पर्वत कछार पर
सतरंगी पाल बा
फूँकद!
किसुना के शंख
भावना के
लाग जाई चाँटा
गली-गली
बिछल बा काँटा।
कुहरा में डूब गइल
चीखत सबे गाँव बा
थथमाइल पपनी के
पियराइल पाँव बा
छील द!
दहशत के पंख
भाग जाई
जमकल सन्नाटा
गली-गली
बिछल बा काँटा।
धधकत सृंगार देख
मन अकुलाइल बा
नफरत के आग देख
समय घबराइल बा
बाजे द!
बिगुल असंख्य
फगुहारा जोड़ी ई फाँटा
गली-गली
बिछल बा काँटा
बैंगनी, सिन्दुरी
पीला सपाटा।