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गली का मुहाना और तुम / ऋतु त्यागी
Kavita Kosh से
तुम यूँही ही एक दिन खड़ी थी गली के मुहाने
तुम्हारे कँधे को दबाता
वही तुम्हारा पुराना बैग तुम्हारे साथ खड़ा था
तुम शायद कहीं जाने की तैयारी में थी
तुम्हारे चेहरे पर तनाव के हल्के बादल उड़ रहे थे
मैंने उस वक्त सोचा था
कि तुम्हारे बगल में खड़ा हो जाऊँ
और उतार लूँ तुम्हारे कँधे पर रखा वह बैग
पर मैं हमेशा फैसलों की घड़ी की गुजर जाने की
हद तक उसे देखता रहता हूँ
और इस बार भी यही हुआ
मेरे सोचते- सोचते तुम रिक्शा में बैठकर
अपने दुपट्टे और अपने बैग की धरोहर सँभाले
मेरी आँखों के ठीक सामने
मुझ से अनभिज्ञ-सी चली गई
और मैं फैसले की इस घड़ी की टिक-टिक
अपने कानों की जेब में रख कर
उन्हें अपनी हथेलियों से
आज भी सहला रहा हूँ ।