भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं.. / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
(गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़... / मुनव्वर राना से पुनर्निर्देशित)
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्ज़िद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
अभी रोशन हैं चाहत के दीये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवाएँ रोज़ आती हैं
कोई मरता नहीं है, हाँ मगर सब टूट जाते हैं
हमारे शहर में ऎसी वबाएँ<ref>बीमारियाँ</ref>रोज़ आती हैं
अभी दुनिया की चाहत ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा
अभी मुझको बुलाने दाश्ताएँ<ref>रखैलें</ref>रोज़ आती हैं
ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डाला
मगर उम्मीद की ठंडी हवाएँ रोज़ आती हैं
शब्दार्थ
<references/>