भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (11) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख्याँ बहरी है र कान आँधा है. आ ही भली हुई ! नहीं तो देखै जिया ही सुणलै र सुणै जिया ही देख लै क तो परळै हूँता के ताळ ळागै ?