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गळगचिया (13) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
डूंगर री चोटी परां चढ़ र कीढ़ी नीचै देख्यों तो हाथी बकरी जतो र ऊँट सुसियै जतो क ही लाग्यो। कीड़ी घणी राजी हू र बोली-अबै को डरूँ नीं। बैम स्यूं ही बड़ाळ दीखै हा।
खाथी खाथी चाल र नीचै आई तो फेरूँ हाथी डूंगर जतो र ऊँट हाथी जतो क ही दीख्यो। घबड़ा र डूंगर नै पूछयो, चनेक में ही ओ फरक पाछो किंयाँ पड़ग्यो ?
डूंगर मुळक'र बोल्यो — पैली आंख्यां थारी पण पग म्हारा हा, अबै आंख्यां अर पण दोन्यूं थारा निज रा है।